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Apr 14, 2009

तरकश (जावेद अख्तर)

ख्वाब के गाँव में चले है हम
पानी छलनि में ले चले है हम

छाछ फूँके की अपनी बचपन में

दूध से किस तरह जलें है हम

ख़ुद है अपने सफर की दुश्वारी
अपने पैरों के आबले है हम


तू तो मत कह हमें बुरा दुनिया
तुने ढाला है और ढले है हम

क्यूँ है कब तक है किसकी खातिर है
बड़े संजीदा मासले है हम

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